मिति: २०७० फाल्गुण १० गते । लमजुङ्ग खुदी- १

22 फरवरी 2014 272

धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय


महा मैत्री मार्ग गुरु, गुरु मार्ग ओर भगवान मार्ग का अनुसरण करके विस्मृत भाव लेकर अवगमन करने वाले समस्त संघ मित्रता धर्म प्रेमी अनुयायियों को मैत्री मंगलम करके, वर्तमान गुरु क्षण की स्मृति के साथ सन्तापित सभी आत्माएं महा मैत्री धर्म के मार्ग पर शीतलता का बोद्ध करें। धर्म ही केवल ऐसा तत्व है जिसके धरातल पर टिके रहकर परमात्मा के साक्षात दर्शन पाने का अवसर प्राप्त होता है एवं भाव रहित दिशाहिन बँया समान भटक रही आत्माऐं महा मैत्री का मंगल नाद श्रवण करके यथा शीघ्र बंधन मुक्त हो। जैसे प्यास की आत्यान्तिकता अनुरुप पानी का मोल होता है उसी प्रकार दया करुणा अहिंसा श्रद्धा आस्था भक्ति विश्वास ओर मार्ग के प्रति अटलता से मानव जीवन मे धर्म का मोल होता है। धर्म मे प्रवेश होने का मतलब मुक्ति ओर मोक्ष के मार्ग मे लीन होना है। जिस मार्ग मे मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व नही होते, सत्य धर्म मे उसे कभी भी मार्ग कहना स्विकार्य नही किया जा सकता। एवं धर्म खण्डित संस्कृति मे ना होकर आत्मा ओर परमात्मा बिच के सेतु मैत्री ज्ञान की परिपूर्णता मे उपलब्ध होता है। मनुष्य मैत्री ज्ञान से दूर रहकर कोई भी अभ्यास करले, सत्य तत्व की प्राप्ति असंभव है। क्षणिक संसार मे लाभ दिखाई देने वाले भी अन्तत: सभी व्यर्थ रह जाएंगे। असंख्य प्राणियों का जीवन चक्र ओर अवगमन, समस्त लोकों की व्यवस्था, एवं आत्मा अनात्मा ओर परात्मा बीच की अखण्डता है। धर्म सूर्य का उदय ओर अस्त होना, आकाश मे चांद तारों का चमकना, प्रकृति मे फूल का खिलना है। धर्म अन्तत: अघोर दु: स्वपन को समझ कर वास्तविकता मे अपने आप को सकुशल पाने जैसे ही इस अनित्य संसार की क्षण भंगुरता का बोद्ध् करना है। धर्म कुशल विचार ओर बुद्धिमान मनुष्य के क्या गुण है, धर्म मे वस्तु धर्म क्या करता है जैसे प्रश्न करने से अच्छा संसारिक वस्तु की वासना ओर बन्धनो से मनुष्य ने अपने आप को क्या दिया है ऐसे प्रश्नो की खोजं क्यों नहीं करता? मनुष्य के खुद से अनुसरण किये मार्ग मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व रखता है या नहीं जैसे विषय मनुष्य की अपनी नितांत व्यक्तिगत अन्तर खोज है। गुरु धर्म पूरा करते है लोक को मार्ग देकर पर मार्ग पर यात्रा मनुष्य को स्वयं करनी पड़ती है। गुरु से मार्ग दृष्टि रहे हुए मार्ग पर यात्रा करने वाली आत्माओं के संचित किए हुए पुण्य ओर अन्य कर्म अनुरुप पाने वाले तत्व ओर भोगने पड़ने वाले सत्य सुनिष्चित होंगे। मार्ग मे विवीध कठिनाईयां आना ऐसा स्वाभाविक होने पर भी तात्विक विषय अन्तत: गुरु मार्ग के प्रति श्रद्धा ओर विश्वास है। होश रखिए, धर्म तत्व के अनमोल रत्नों से भरिपूर्ण यह महा मैत्री मार्ग सर्वज्ञान के महा बोद्ध से पूर्ण है। तथापी मनुष्य रिक्त शब्दों का भण्डारन करने से पूर्व अपने जीवन मे प्रयोग व गुरु मार्ग का अनुसरण करके शिघ्र ही मार्ग तत्व का बोद्ध करते हैं। धरती मे टिके रहकर आकाश आसन मे अडिग मनुष्य चोले मे रहकर भी मैत्री तत्व के बोद्ध के साथ परमात्मा के विशद स्वरूप के दर्शन पाना, अपने साथ समस्त लोक के रहस्य का बोद्ध करना, चित के असंख्य भवसागर से पानी की तरह वश्विभूत होकर खुले आकाश मे मुक्त होना है। सर्व धर्म ओर गुरु ज्ञान से भी उच्च गुण के तत्वों को प्रदान करके विश्वभर पूर्वी भ्रमित अस्तित्व लोप कराने की योग्यता को ही मैत्री धर्म कहा जाता है।तदनुसार सर्व धर्म का पूर्वी अस्तित्व सभी मैत्री धर्म के मार्ग मे ही सिमटे हुए है। मैत्रीय मार्ग पर मनुष्य जीवन के अन्तिम क्षण तक धर्म का सत्य अभ्यास करके ही मात्र धर्म लाभ करता है। इस मैत्री संदेश के साथ सम्पूर्ण विश्व मानव भित्र के क्लेश को मुक्त करने के लिए मैत्रीय ११ (ग्यारह) शील दे रहा हूं।

१) नाम, रुप, वर्ण, वर्ग, आस्था, समुदाय, शक्ति, पद्, योग्यता आदि के आधार मे भेदभाव कभी भी न करो तथा भौतिक, आध्यात्मिक जैसे मतभेदों को त्यागो।

२) शाश्वत धर्म, मार्ग ओर गुरु को पहिचान कर सर्व धर्म ओर आस्था का सम्मान करो।

३) असत्य, आरोप, प्रत्यारोप, अवमुल्यन तथा अस्तित्वहिन वचन करके भ्रम फैलाना त्यागो।

४) भेदभाव तथा मतभेद के सिमांकन करने वाले दर्शन व रास्तों को त्याग कर सत्य मार्ग अपनाओ।

५) जीवित रहने तक सत्य गुरु मार्ग का अनुसरण करके पाप कर्मो को त्याग कर गुरु तत्व के समागम मे सदा लीन रहो।

६) स्वयं तत्व को प्राप्त किए बिना शब्द जाल की व्याख्या से सिद्ध करके इसे न खोजो तथा भ्रम मे रहकर ओरों को भ्रमित न करो।

७) प्राणी हत्या हिंसा जैसे दानवीय आचरण त्याग कर सम्यक आहार करो।

८) राष्ट्रीय पहिचान के आधार मे मनुष्य व राष्ट्र प्रति संकीर्ण सोच न रखो।

९) सत्य गुरु मार्ग का अनुसरण करके स्वयं के साथ साथ विश्व को लाभान्वित करने वाले कर्म करो।

१०) सत्य के गुरु मार्ग रुप लेकर उपलब्ध होने पर समस्त जगत प्राणी के नीमित तत्व प्राप्त करो।

११) चित्त के उच्चतम ओर गहनतम अवस्था मे रहकर अनेकौं शील को आत्म बोद्ध करके सम्पूर्ण बन्धनो से मुक्त हो।

इन मैत्रीय ११ (ग्यारह) शील के साथ सभी संघ आत्मसात करके अपने साथ साथ समस्त प्राणीयों के उद्धार करने वाले इस सत्य मार्ग ज्ञान का सार बोद्ध करें। संसारिक वस्तु नाम यश कीर्ति के पीछे अहंकार वश न भटक कर सदा आत्मा मे मैत्री भाव रखते हुए परमात्मा की स्मृति मे तठष्ट रहो। लोक मे सत्य धर्म का पुन: अनुष्ठान करने के लिए युगों के अन्तराल मे गुरु मार्ग का अवतरण हुआ है। इस स्वर्णिम क्षण का बोद्ध जैसे प्राणी एवं वनस्पति कर रहे हैं वैसे ही मनुष्य भी क्लेश रहित होकर महा मैत्री मार्ग मे यथाशिघ्र धर्म लाभ करें।

सर्व मैत्री मंगलम्
अस्तु तथास्तु ।।

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